यमुनोत्री

यमुनोत्री चारधाम यात्रा का प्रमुख स्थल माना जाता है। यमुना नदी के उद्गम क्षेत्र में यह तीर्थ स्थल निकटवर्ती बस स्टॉप हनुमानचट्टी से 14 किमी0 की पैदल यात्रा यात्रा करनी पड़ती है। इन पैदल मार्गों में प्रकृति के मनभावन स्वरूप को देखकर तीर्थ यात्री अपनी थकान भूलकर प्रकृति का आनंद लेते हैं। यमुना का मंदिर आपदा के कारण कई बार क्षतिग्रस्त हुआ है, जिसके बाद कई बार इसका निर्माण भी हुआ है। यह प्राचीन मंदिर टिहरी नरेश महाराजा प्रतापशाह ने संवत 1919 में बनवाया था। प्राकृतिक आपदा के बाद यह मंदिर कलकत्ता के सेठ जालान के सहयोग से बना। शीतकाल में अत्यधिक ठंड पड़ने से यहाँ बर्फ गिरानी शुरू हो जाती है, जिसके कारण यमुनोत्री धाम के कपाट बंद कर दिये जाते हैं और ग्रीष्मकाल में प्रतिवर्ष बशाख शुक्ल की तृतीया को खोले जाते हैं। सप्तऋषि कुण्ड से करीब 6 किमी0  की दूरी पर खरसाली गाँव है, जहां सोमेश्वर देवालय है। गंगोत्री मंदिर में खरसाली गाँव के पंडित पुजा-अर्जना का कार्य करते हैं। 

दर्शनीय स्थल
गर्म जल कुंड
मंदिर के पास पहाड़ी चट्टान के अंदर से गर्म पानी का फव्हरा निकलता रहता है। इस कुंड में यात्रीगण कपड़े की पोटी में चावल और आलू बांधकर रखते हैं व कुछ समय बाद यह पककर तैयार हो जाता है। इस कुंड का नाम सूर्य कुंड है।

सप्तऋषि कुंड
यह हिमानी झील यमुनोत्री से 10 किमी दूर है। यहाँ तक पहुँचने का मार्ग काफी दुर्गम है। यह स्थल यमुना नदी का वास्तविक उदगम स्थल है। इस झील में ग्लेशियर जमा होता रहता है और पानी का पूरा रंग नीला है। झील के आसपास ब्रह्मकमल के पुष्प खिले रहते है।

यमुनोत्री गाथा
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार देवी यमुना और यम (मृत्यु देवता) भगवान सूर्य एवं संज्ञा (जागरूकता की देवी) से दो संताने थी। ऐसी धारणा है की संज्ञा, सूर्य की भीषण गर्मी को सहन नहीं कर पा रही थी, तत्पश्चात यम ने छाया नाम का पुतला बनाकर उसको जगह दे दी। एक दिन यम ने छाया को अपने पैर से मरने की कोशिश की तो क्रोधित छाया ने यम को अभिशाप दिया कि तुम्हारा पैर एक दिन गिर जाएगा। यमुना जब पृथ्वी पर आई तो उसने अपने भाई को छाया के अभिशाप से मुक्त करने के लिए घोर तपस्या की। यम इससे बहुत प्रसन्न हुआ और यमुना को वरदान भी दे दिया। यमुना ने अपने भाई यम से वरदान के रूप में नदियों के सुरक्षित जल की मांग की, जिससे किसी की पानी पीने के अभाव के कारण मृत्यु न हो व मोक्ष की प्राप्ति हो इसलिए यमुनोत्री धाम उद्गम स्थिल के निकट स्थित पर्वत का नाम भगवान सूर्य, जिन्हें कलिंदा भी कहते हैं।

यमुनोत्री तक पहुँचने का मार्ग
वायुमार्ग समीपवर्ती हवाई अड्डा जौलीग्रांट जो कि ऋषिकेश से 18 किमी दूर है।
रेल मार्ग निकतम रेलवे स्टेशन 219 किमी0 दूर ऋषिकेश।
सड़क मार्ग यमुनोत्री से 14 किमी0 पहले हनुमानचट्टी तक ही बस सेवा उपलब्ध है। फिर वहाँ पैदल मार्ग से ही आगे का रास्ता तय करना होता है। ऋषिकेश, देहरादून, विकासनगर, मसूरी, उत्तरकाशी, गंगोत्री तथा बड़कोट से नियमित टैक्सी व बस सेवाएँ हनुमानचट्टी तक ही उपलब्ध है।