गंगोत्री

यह तीर्थ स्थल प्राकृतिक सौन्दर्य व हिमालय की पवित्रता के कारण मोहित करता है। गंगा नदी के उद्गम क्षेत्र में बसा यह प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। चार धाम यात्रा में गंगोत्री धाम का विशेष महत्व है। इस स्थल तक अब मोटर मार्ग बन जाने से यात्रा काफी सुगम हो गई है। तीर्थ यात्रियों के साथ ही वर्तमान समय में यहाँ पर्वतारोही व पर्यटक भी भरी संख्या में पहुँचते हैं। ऋषिकेश से करीब 255 किमी0 की दूरी पर इस मंदिर के कपाट अप्रैल माह में अक्षय तृतीया को खोला जाता है। माँ गंगा की डोली मुखवा गाँव के मार्कन्डेय मंदिर से शुरू होकर गंगोत्री धाम से लिए प्रस्थान होती है।

गंगा का मुख्य उदगम स्थल यहाँ से 18 किमी0 दूर गोमुख स्थित है। 18 किमी0 की यह यात्रा पैदल तय करनी पड़ती है, लेकिन कई यात्री इस स्थल तक भी जाते हैं। उत्तरकाशी जनपद में स्थित गंगोत्री धाम समुद्र तल से 9,980 (3,140 मी0) फीट की ऊंचाई पर स्थित है। गंगोत्री धाम में भागीरथी का मंदिर है, जिसमें गंगा, लक्ष्मी, पार्वती व अन्नपूर्णा की मूर्तियाँ स्थापित है। गंगोत्री में गंगा को भागीरथी नदी के नाम से जाना जाता है। 

दर्शनीय स्थल
भागीरथी जल प्रभात
गंगा नदी को यहाँ भागीरथी के नाम से जाना जाता है। इस स्थान पर जलधारा एक बड़े झरने के रूप में गिरती है।

भागीरथ शिला
मंदिर के पास भागीरथ शीला है। यहाँ पर स्नान व धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। यहा से आगे चलकर केदारताल से आने वाली केदारगंगा, भागीरथी नदी में मिल जाती है।

पटांगणा
गंगोत्री धाम से डेढ़ किमी0 आगे देवदार व अन्य के सघन वन है। गंगा नदी यहाँ संकरी घाटी में से होकर बहती है।

जलमग्न शिवलिंग
यह भगीरथी नदी में डूबा प्राकृतिक शिवलिंग शिला है। पानी का जल स्तर जब कम होता है तो तब यह शिवलिंग दिखाई देता है।

गंगोत्री गाथा
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भारतवर्ष के राजा महाराज सागर का राज था। महाराज सागर के पुत्र अत्यंत अहंकारी थे। अपने अहंकार के कारण एक दिन उन्होने एक महर्षि का अपमान कर दिया, जिससे क्रोधित महर्षि ने उन्हें भष्म कर दिया व उनकी आत्मा मोक्ष से वंचित रह गयी। महाराज की कई बार विनती करने के पश्चात महर्षि ने उन्हे कहा कि शाप तो वापस नहीं लिया जा सकता है, लेकिन उपाय किया जा सकता है। उन्होने महाराज को बताया कि यदि स्वर्ग से दिव्य नदी गंगा को धरती पर लाया जाये तो उनके पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। इसके बाद उन्होने अपनी कड़ी तपस्या के बाद दिव्य गंगा माँ को धरती पर ले आए। गंगा के प्रचंड स्वरूप के कारण विनाश से धरती को बचाने के लिए भगवान शिव ने गंगा को पहले अपनी जटा में धरण कर फिर धरती की ओर प्रवाहित किया।

गंगोत्री तक पहुँचने का मार्ग
गंगोत्री तक पहुँचने के लिए मोटर मार्ग एक मात्र व उत्तम साधन है। गंगोत्री तक सीधी बस सेवा उपलब्ध है। ऋषिकेश, देहरादून, हरिद्वार, टिहरी, श्रीनगर, पौड़ी, उत्तरकाशी आदि स्थानों से त्वरित बस सेवा के साथ ही टैक्सी की सुविधा भी उपलब्ध है।