
मानसरोवर के बारे में कहा जाता है कि इस झील का निर्माण स्वयं ब्रह्मा जी ने किया था। आदिकाल से ही कैलाश मानसरोवर को पवित्र तीर्थ स्थल माना गया है। कहा जाता है कि इस झील में स्नान करने से सभी पाप मिट जाते हैं। पौराणिक गाथाओं के अनुसार शिव और ब्रह्मा, देवगण, सरिच आदि ऋषि व रावण आदि ने यहाँ तप किया था। युधिष्ठर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पुंछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इसके साथ ही यहाँ अनेक ऋषिमुनियों के तपस्या करने का उल्लेख प्राप्त होता है। कुछ धार्मिक विद्वानों के अनुसार शंकरचार्य ने अपने शरीर का त्याग यहीं किया था।
हिंदुओं के अनुसार कैलाश शिव का सिंहासन और बौद्धों के अनुसार एक विशाल प्राकृतिक मण्डल लेकिन फर्क इतना है कि दोनों ही धर्मों के लोग इसे तांत्रिक शक्तियों का भंडार मानते हैं। इस पर्वत का पिरामिड आकार पूरे वर्षभर बर्फ की सफेद चादर से ढका होता है। जैन धर्म में इस स्थान का विशेष महत्व है। वे कैलाश को अष्टापद कहते हैं। ग्यारहवीं सदी में सिद्ध मिलैरेपा इस प्रदेश में अनेक वर्ष तक रहे। विक्रम-शीला के प्रमुख आचार्य दीपशंकर श्रीज्ञान तिब्बत नरेश के आमंत्रण पर बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए यहाँ आए थे।
इस यात्रा के लिए हल्द्वानी, काठगोदाम, भुवाली तथा अल्मोड़ा होते हुए रेलगाड़ी तथा सड़क मार्ग से वागेश्वर पहुंचा जाता है। आगे वागेश्वर से काँड़ा, विजयपुर, कोट्मन्या से चाय बागानों (पूर्वी) तथा गौरी नदियों को पार करते हुए डीडीहाट, ओगला तथा जौलजीवी होकर धरचूला पहुँचते हैं। यही रात्री विश्राम व चिकित्सा परीक्षण करके अगले दिन धरचूला से 19 किमी0 आगे तवाघाट (914 मी0) है, जहाँ पर तीव्रवेग से गर्जन करती हुई पूर्वी धौली तथा काली नदी का संगम होता है।
तवाघाट से 17 किमी0 आगे माँग्टी तथा चार किमी0 की दूरी पर गाला (2440 मी0) है। यहाँ कुमाऊँ मण्डल विकास निगम द्वारा निर्मित विश्राम-कुटियों के शिविर सुविधाएं उपलब्ध है। गाला से 16 किमी0 चलकर बूंदी पहुँचते हैं जहाँ यात्री विश्राम करते हैं। बूंदी से 17 किमी0 आगे 3500 मीटर की ऊंचाई पर गूंजी है। बूंदी से 3 किमी0 आगे चलकर छियालेख (3350 मी0) पहुँचते हैं। यहाँ से दक्षिण की ओर काली गंगा नदी और पूर्व में अपि नाम्भा की चोटियाँ तथा गरब्यांग और छांगरु गाँव दिखाई देते हैं। उत्तर में नेपाल से आने वाली थेकर नदी का कालीनदी से संगम होता है। छियालेख से 14 किमी0 आगे गूंजी पहुँचकर छोटा कैलाश यात्रा मार्ग आरंभ हो जाता है।

कैलाश पर्वत की ओर 20 किमी0 लाहाचू नदी के साथ-साथ चलते हुए सूर्यास्त से पूर्व दिरापुक गोम्पा (4909 मी0) पहुँचकर कैलाश के उतरी भाग के सूर्यास्त का मनमोहक दृश्य दिखाई देता है। मानस दल परिक्रमा की ओर झील के दक्षिण-पश्चिमी भाग के साथ-साथ जैदी पर परिक्रमा पूर्णा करने से पहले गोसुअल का भी दर्शन करता है।