विलुप्त होती आँगन की वो गौरैया

संपादकीय विचार: कुछ दिनों से गौरैया की चहचाहट बमुश्किल सुनाई देती है। विलुप्त होती गौरैया की प्रजाति को लेकर लोगों में बचाव अभियान की मुहिम चलाई जा रही है। इस मुहिम के तहत लोगों में बदलाव देखा जा सकता है। गौरैया के प्रति अब सकारात्मक परिणाम देखने को मिलने लगे हैं।

गौरैया का जो झुंड पहाड़ के गाँव में सबसे ज्यादा देखा जाता है, लेकिन विगत दिनों इनकी संख्या दिनों दिन कम होती जा रही है। मुश्किल से एक झुंड में 10-15 गौरैया दिखाई देती है जबकि इससे पहले 25-30 का झुंड दिखाई देता था।

गौरैया को संरक्षण के लिए हम सभी को एक अनोखी पहल करनी चाहिए। घर के किसी सुरक्षित स्थान पर लकड़ी का छोटा सा घर अथवा रोशनदान वाले स्थान पर भी गौरैया के लिए जगह उपलब्ध कराई जा सकती है। वैसे पक्षी कोई भी हो, घर के आँगन में पानी का बर्तन व मुलायम खाने के दाने जैसे बारीक चाँवल के दाने, पका हुआ चाँवल, रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े इत्यादि मसले रहित भोजन के बारीक टुकड़ों को आँगन में जरूर रखें।
यदि अपने आँगन में पंखा चलते हों तो वो न चलाएं क्योंकि जिस पहल को आप पक्षी के लिए सुरक्षित रखना चाहते हैं, दरअसल वह पंखा चलने की वजह से उस आँगन में नहीं आती इसके साथ ही पंखा चलते वक़्त कोई भी पक्षी उससे टकरा सकता है।

गौरैया के घोंसले वाले स्थान पर ऐसी कोई वस्तु न रखें जिससे उनको नुकसान हो, यदि आपके आँगन में जहाँ गौरैया बैठती हो वहाँ आप एक छोटा सा लकड़ी अथवा किसी भी वस्तु का बना मजबूत घरनुमा घोंसले का निर्माण जरूर कराएं।

खतरे भरे स्थानों पर जब गौरैया अपने घोंसले का निर्माण करती है तो वहाँ पर अधिकतर शिकारी पक्षियों का खतरा ज्यादा रहता है। वह इन छोटे पक्षियों व उनके अंडों को नुकसान पहुंचाते हैं, इससे उनकी प्रजाति पर गहरा असर पड़ा है, इसलिए आप भी गौरैया के लिए अपने स्तर पर एक अहम मुहिम चलकर उनके संरक्षण के लिए एक कदम बढ़ाकर फिर से उनको चहचहाने के लिए अपने आँगन में ला सके।