चन्द्रभागा नदी व हरिद्वार से करीब 24 किमी0 की दूरी पर स्थित चार-धाम यात्रा का दूसरा मुख्य पड़ाव ऋषिकेश है। धार्मिक व आध्यात्मिक के लिए ऋषिकेश प्रसिद्ध है। ऋषिकेश का पौराणिक नाम कुब्जाम्रक माना जाता है। इस नाम के आधार पर एक पौराणिक कथा यह है कि केदारखण्ड के अनुसार मुनिरैभ्य ने आम के पेड़ का आश्रय लेकर कुब्जा रूप में भगवान के दर्शन किए थे, जिसके कारण इसका नाम कुब्जाम्रक पड़ा। यहाँ पर हजारों विदेशी पर्यटक आते हैं। इसके साथ ही यहाँ रफ्टिंग, पर्वतारोहण अभ्यास, जलक्रीडा व वन्य अभ्यारण आदि का लुप्त उठाया जाता है।
दार्शनिक स्थल
लक्ष्मण झूला
लक्ष्मण झूला का निर्माण सन 1939 में गंगा के 150 मी0 की ऊँचाई पर बनाया गया। इस झूला पुल को पार करके स्वर्गाश्रम पहुंचा जाता है।
रामझूला
रामझूला को पहले शिवानंद झूला कहा जाता था। यह झूला स्वर्गाश्रम, शिवानंद आश्रम व स्वर्गाश्रम के मध्य नदी पर स्थित है।
त्रिवेणी घाट
यहाँ भरत मंदिर के पास कुब्जाभ्रक नामक घाट है। तीन स्त्रोतों से पानी आकर मिलता है। इस घाट पर स्नान के लिए श्रद्धालुओं के काफी संख्या में भीड़ मौजूद रहती है। त्रिवेणी घाट के दक्षिण में श्री रघुनाथ मंदिर है। इस मंदिर में प्रवेश करने से पहले यहाँ पर स्थित कुण्ड में पितरों का तर्पण किया जाता है।
स्वर्गाश्रम
यहा पर अनेकों आश्रमों व मंदिरों की अत्यधिक संख्या है। यहाँ पर सभी देवी-देवताओं की मूर्तियाँ विस्थापित है।
नीलकंठ
ऋषिकेश से लगभग 12 किमी0 की दूरी पर स्थित है। नीलकंठ के बारे में कहा जाता है कि यहाँ शिव ने समुद्र मंथन में निकले विष को यहीं ग्रहण किया था, जिसके कारण उनका कंठ नीला पड़ गया था। यह मंदिर 1700 मीटर की ऊँचाई पर वन क्षेत्र में स्थित है।
भरत मंदिर
ऋषिकेश में सबसे प्राचीन भरत मंदिर स्थित है। यहाँ राम-लक्ष्मण व शत्रुघन के मंदिर प्रसिद्ध व दर्शनीय है।
ऋषिकेश तक पहुँचने का मार्ग
वायुमार्ग यहाँ से 20 किमी0 दूर जौली ग्रांट हवाई अड्डा है।
रेल मार्ग सभी नगरों से रेल सुविधा उपलब्ध नहीं है।
सड़क मार्ग यहाँ पहुँचने के लिए दिल्ली, उत्तर प्रदेश, आगरा, नैनीताल, चार धाम के लिए विशेष गाडियाँ व टैक्सी की अन्य सुविधाएं उपलब्ध है।