पारंपरिक लोकगीत-संगीत का भण्डार है उत्तराखंड

उत्तराखंड लोक नृत्य व संगीत खासतौर पर एक अलग-अलग परंपरागत ढंग से विख्यात है। परंपरागत संगीत के आधार पर उसके नृत्य की रूपरेखा भी उसके ही अनुसार प्रस्तुत की जाती है जैसे धार्मिक लोकगीत में जागर, देवी-देवताओं का गीत, संस्कार लोकगीत में बच्चे के जन्म पर, मांगल, विवाह, जनेऊ, ऋतु लोक गीत में वसंतगीत, झूमैलो, होली ऐसे ही और कई सारे प्रसिद्ध गीत प्रमुख है।

धार्मिक गीत
जागर, देवी-देवता गीत व नृत्य, मनौती के लिए अनेक प्रकार के गीत व संगीत इत्यादि स्थानीय तौर पर प्रस्तुत किया जाता है।

संस्कार गीत
बच्चे के जन्म पर, मांगल, अन्य संकार गीत।

ऋतुगीत
वसंत, झूमैलो, होली, खुदेड़, बारहमासी।

नृत्यगीत
चौंफुला, छोपती, चाँचर, माघगीत, तांदी।

प्रणयगीत
बाजूबंद, लामण, छोपती, बारहमासी।

उत्तराखंड के स्थानीय लोगों द्वारा सबसे प्रसिद्ध लोकनृत्य व संगीत छौंफुला, पांडव नृत्य, झूमैलो, छोलिया, बाजूबंद, वसंत गीत व मंगलगीत का विशेष महत्व है। पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार पहले यह गीत संगीत काफी प्रचलित होने के साथ ही लोगों में एक अलग ही उत्साह दिखाई देता है, लेकिन आधुनिक युग और चाक-चौबन्द के आगे हमारे पारंपरिक गीत-संगीत व लोक नृत्य की परिभाषा बदलते देर न लगी, जिसके कारण हमारे पारंपरिक गीतों का चलन कम हो रहा है क्योंकि आज आधुनिक संगीत तकनीकी के कारण विलुप्ति की कगार पर है।

ये तो वो गीत-संगीत के कुछ नाम हैं जो विशेष तौर पर उत्तराखंड को अलग ही पहचान दिलाती रही, लेकिन इसके अलावा बहुत सारे अंश जो अब शायद ही किसी स्थानीय कार्यक्रमों में भी झलक जाता हो। पलायन की स्थिति के अनुसार उत्तराखंड की सामाजिक लोक कलाओं में भी परिवर्तन की स्थिति यथावत देखी जा सकती है। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि उत्तराखंड से पलायन हुए परिवारों में इन गीत संगीत की रुचि कम ही दिखाई देती है, लेकिन जहां भी उत्तराखंड के नृत्य व गीत-संगीत की धुन दिखाई दे वहाँ नृत्य करने वालों के कदम अपने आप ठहकने लगते हैं।