हरिद्वार

उत्तराखण्ड प्रकृतिक सौन्दर्य की अनुभूति व सुखद वातावरण के साथ ही आस्था का विशेष केंद्र भी है। चार धाम यात्रा के लिए सर्वप्रथम हरिद्वार से प्रारम्भ होती है। धार्मिक स्थलों में हरिद्वार का विशेष महत्व इसलिए भी है, क्योंकि यहाँ कुम्भ यात्रा व पावन गंगा का प्राचीनतम नगरों में से एक है। शिवालिक पहाड़ियों के तलहटी में गंगा से निकलकर आती हुई पावन गंगा के रूप में अवतरित होती हुई बंगाल की खाड़ी में मिलती है। पौराणिक गाथाओं के अनुसार राजा भागीरथ के पूर्वज, कपिल मुनि के श्राप से ग्रसित होकर भस्म हो गए थे, जिसके बाद राजा भागीरथ ने कठोर तपस्या करके स्वर्ग से गंगा को पृथ्वी पर लाये और अपने पूर्वजों का उद्धार किया था। इसी के चलते हरिद्वार का अन्य प्राचीन नाम कपिल स्थान भी है। हिन्दुओं का पवित्र धार्मिक स्थान होने के साथ ही पर्यटक स्थलों के रूप में भी जाना जाता है।

दार्शनिक स्थल:
हरकी पौड़ी
यह हरिद्वार का सबसे प्रमुख घाट है। यहाँ प्रत्येक दिन लोग हजारों की संख्या में आते हैं। इस घाट पर पुजारीयों के साथ ही अन्य संस्कारों की पुजा की जाती है। मंदिर स्थल पूरी तरह से अनेक प्राचीन कलाकृतियों व मूर्तियों से सुसज्जित है। यात्रियों द्वारा यहाँ पर स्नान, पुजा, फूल चढ़ावा आदि किया जाता है, जबकि प्रतिदिन सुबह-शाम यहाँ पर गंगा जी की विशेष आरती की जाती है, जिसमें भक्तों के साथ ही हजारों दीप जगमगाते नजर आते हैं। यह भव्य स्वरूप जब गंगा की लहरों में तैरते दीपक लहराते नजर आते हैं तो सम्पूर्ण वातावरण भक्ति भाव में डूब जाते हैं, शंख ध्वनि के साथ ही हजारों भक्तों द्वारा आरती का गान किया जाता है।

मनसा देवी मंदिर
हरकी पौड़ी से लगभग 2 किमी0 की दूरी पर यह मंदिर बिलवा पर्वत पर स्थित है। मंदिर तक पहुँचने के लिए यात्री पैदल व रोपवे का स्तेमाल करते हैं। 

ब्यूटी पॉइंट
मनसा देवी मंदिर मार्ग से करीब दो किमी0 की दूरी पर यह स्थल स्थित है। यहाँ से हरिद्वार का पूरा मनमोहक दृश्य देखा जा सकता है। हरिद्वार की मैदानी भागों में फैली जलधाराओं, नदियों के ऊपर बने बैराजपुल व प्राकृतिक का सम्पूर्ण आनंद लिया जाता है।

चंडीदेवी मंदिर
गंगा के एक ओर जहां मनसा देवी का मंदिर है तो वहीं दूसरी ओर माँ चंडी देवी का मंदिर नील पर्वत पर स्थित है। कहा जाता है कि कश्मीर के राजा सुचात सिंह 1929 ई0 में बनाया था। चंडी मंदिर तक पहुँचने के लिए छोटी गाड़ियों व घोड़ों से पहुंचा जा सकता है। मंदिर में निलेश्वर, अंजनी देवी व अन्य देवी देवताओं के भक्तिभावपूर्ण दर्शन किए जा सकते हैं।

भीमगोड़ा सरोवर
यह सरोवर हरिद्वार में एतिहासिक गाथाओं का एक केंद्र रहा है। गाथा है कि जब पाँचों पांडव इसी राह से हिमालय की ओर प्रस्थान कर रहे थे तो उन्होने यहाँ कुछ समय विश्राम किया। इसके साथ ही यहाँ भीम ने अपने घुटने की शक्ति से इस सरोवर का निर्माण किया था। इस सरोवर में स्नान करने से धार्मिक दृष्टि से पुण्यकारी माना जाता है।

सप्तऋषि
हरिद्वार में गंगा विशाल स्वरूप एक छोटी-छोटी धाराओं में विभाजित होकर अन्य भू-भागों में बहती है। इन्ही धाराओं में से एक सप्त सरोवर भी विशेष है।

दक्ष महादेव मंदिर व सतीकुंड (कनखल)
हरिद्वार से करीब 5 किमी0 की दूरी पर स्थित कनखल नामक स्थल पर यह पौराणिक स्थान है। हरिद्वार में इस स्थल का विशेष महत्व रहा है। कहा जाता है कि यह वहीं स्थल है जहां भगवान शिव रुष्ट होकर तांडव नृत्य किया था।

भारत माता मंदिर
भारत माता मंदिर सात मंज़िला भवन के रूप में है। इस मंदिर के निर्माण में शिल्प-मूर्तियों का बेजोड़ नमूना है। खास बात यह है कि इस मंदिर में देवी-देवताओं, ऋषि मुनियों के साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले लोगों की मूर्तियाँ भी प्रतिष्ठित है।

खास बात
हरिद्वार हर बारहवें वर्ष पूर्ण कुम्भ मेला व हर छठे वर्ष अर्द्धकुम्भ मेला का आयोजन होता है।

हरिद्वार तक पहुँचने के लिए यात्रा मार्ग
वायुमार्ग: हरिद्वार से करीब 45 किमी0 की दूरी पर राष्ट्रीय हवाई अड्डा है।
रेल मार्ग: हरिद्वार में देश के अन्य भागों से जुड़ा हुआ है। यहाँ से दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, चंडीगढ़, वाराणसी, कलकत्ता, उज्जैन, जोधपुर व देहारादून इत्यादि।
सड़क मार्ग: हरिद्वार सड़क मार्ग देश के कई नगरों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली, जयपुर, जोधपुर, आगरा, शिमला, चंडीगढ़, लखनऊ, मुरादाबाद, मथुरा, अलीगढ़ सीधी बस सेवाएँ हैं। यहाँ से मसूरी, बदरीनाथ, केदारनाथ आदि के लिए टैक्सी की भी सुविधाएं उपलब्ध है।