केदारनाथ

उत्तराखंड में चारधामों में केदारनाथ हिंदुओं का पवित्र धाम है। केदारनाथ भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह धाम समुद्र तल से 3581 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर के प्रसिद्ध द्वार पर देवीय बैल "नदी" की मूर्ति है। मंदिर को विशाल पत्थरों से पांडवशैली में इस विशाल मंदिर का निर्माण किया गया। पत्थरों पर खुदाई करके तस्वीरों को आकृति दी गयी है। केदारनाथ धाम के लिए गौरी कुंड से 15 किमी0 की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। मई माह में 6 माह के लिए भक्तों के लिए मंदिर के कपाट खोल दिये जाते हैं। कपाट बंद होने के बाद उखीमठ में पुजा-अर्चना की जाती है।

दर्शनीय स्थल
चोखाड़ी ताल
मंदिर से चार किमी0 की दूर पर प्राकृतिक यह बर्फ़ीला सरोवर दर्शनीय है। यहाँ राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की अस्थि प्रवाहित की गई थी, इसलिए इसे गांधी ताल भी कहा जाता है।

शंकराचार्य समाधि
8वीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य ने इस धाम में आकार मंदिर के दर्शन किए थे व 32 वर्ष की उम्र में यहीं समाधि ली थी। 

वासुकी ताल
केदारनाथ से 10 किमी0 की निकट चढ़ाई के बाद अनुपम सौन्दर्य से घिरा वासुकीताल हमेशा से पर्यटकों के लिए विशेष रहा है।

गौरीकुण्ड
केदारनाथ यात्रा के लिए यह स्थान आखिरी बस स्टॉप है। यह स्थान पानी के गर्म कुण्ड व पार्वती का मंदिर भी दर्शनीय है।

केदारनाथ गाथा
पौराणिक गाथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने बद्रीनाथ में अपना पहला कदम रखा। इस स्थान पर पहले भगवान शिव निवास करते थे, लेकिन भगवान विष्णु के लिए उन्होने इस इस स्थान को त्यागकर केदारनाथ में निवास करने लग गए। केदारनाथ मंदिर की ऊंचाई लगभग 66 फीट है। मंदिर के बाहर चबूतरे पर नंदी की एक विशाल मूर्ति है। एकांतप्रिय भगवान शंकर की तपस्थली केदारनाथ के विषय में पुराणों में विषद वर्णन उपलब्ध है। केदारनाथ हिमालय के सभी तीर्थ स्थलों में श्रेष्ठ है। गढ़वाल के श्रेष्ठ प्राचीन व विशाल एवं मंदिरों में प्रसिद्ध है। केदारनाथ में भगवान शिव की पीठ (पृष्ठ भाग) का विग्रह है।

केदारनाथ तक पहुँचने का मार्ग
केदारनाथ पहुँचने के लिए यहाँ से पहले 14 किमी0 पहले गौरीकुण्ड तक ही बस व टैक्सी सुविधाएं उपलब्ध है। गौरीकुण्ड से आगे 14 किमी0 पैदल यात्रा करनी पड़ती है, इसके साथ ही इस पैदल मार्ग पर खच्चर तथा डंडीकंडी की सेवाएँ भी उपलब्ध है।