नैना झील के नाम से प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से नैनीताल भी खूबसूरत नगर है। नैनीताल चारों ओर पहाड़ से घिरा व देवदार के पेड़ों का आवरण चारों ओर देखा जा सकता है। नैनीताल झील सप्तभृंग नाम से जानी जाने वाली सात पहाड़ियों से घिरी हुई है जिनमें अयारपाटा, देवपाटा, हांडी-भांडी, चीमा, आल्मा, लरियाकाटा व शेर का डांडा इत्यादि हैं। पानी से भरे कटोरे जैसी आकृति से बिखरी यह झील रंग-बिरंगी औकाओं से भरी पड़ी होती हैं।
इतिहास के अनुसार इस स्थान की खोज सन 1841 में शाजहांपुर निवासी ब्रिटीश मूल के नागरिक पी0 बैरन ने की थी। कहा जाता है कि बैरन ने इस क्षेत्र के मालिक नरसिंह थोकदार को झील के बीचों-बीच ले जाकर बलपूर्वक वहाँ का स्वामित्व कंपनी शासन के नाम पर कर दिया था। फिर यह क्षेत्र विकास ओर अपने कदम पसारने लगा। सन 1962 में उत्तर प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में भी अपनी पहचान बना चुकी है। नैनीताल में कुमाऊँ विश्वविधालय का मुख्यालय तथा राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मुख्यालय व विधालय होने के साथ ही उत्तराखंड राज्य का उच्च न्यायालय भी यहाँ स्थित है।
सन 1968 से नैनीताल पर्वतारोहण क्लब कार्यरत है, जो शिलारोहण प्रशिक्षण से लेकर पिंडारी हिमनद ट्रेकिंग, नंदादेवी अभयारण ट्रेकिंग तथा एवरेस्ट जैसे अभियानों का संचालन कर रहा है। 1957 की क्रांति से भी यह नगर अपने एक अलग पहचान रखता है। नगर के निकट फांसी गधेरा है, जो इतिहास का गवाह है। नैनीताल के निकट दर्शनीय स्थलों में नैनापीक 6 किमी0, स्नोव्यू 01 किमी0, हनुमान गढ़ी (सूर्यास्त के अनोखे दृश्य के लिए विख्यात स्थल) 3 किमी0, राजकीय वैधशाला 10 किमी0, भवाली 11 किमी0 और खुर्तापाल 10 किमी0 की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा नैना देवी मंदिर, पाषाण देवी मंदिर, डोरथी सीट, किलवरी तथा गोविंदबल्लभ पंत राजकीय प्राणीउधान भी आकर्षण के केंद्र हैं। पर्यटकों के लिए नौकाविहार, घुड़सवारी, स्टेकिंग आदि की सुविधा भी उपलब्ध है।