अपने जागर विधाओं से सबको मंत्रमुग्ध करने वाली उत्तराखण्ड एक मात्र जागर गायिका महिला बसन्ती देवी का जन्म 1953 में देवाल ब्लॉक के अंतर्गत ग्राम ल्वाणी, चमोली जनपद में हुआ। अपने जागर गीतों से अपनी विख्याति की इस पड़ाव में उन्होने साधारण जीवन के तहत कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा था। बसन्ती देवी जो कि पाँचवीं तक अपनी शिक्षा पूर्ण कर पायी थी और मात्र 15 वर्ष की उम्र में ही उनका विवाह श्री रणजीत सिंह के साथ हुआ। विवाह के कुछ समय पश्चात वह अपने पति के साथ जालंधर चली गयी, जहां पर कुछ समय बिताने के बाद उन्होने संगीत की शिक्षा ग्रहण की।
जब उनकी इच्छा संगीत के क्षेत्र में और आगे बढ़ने की हुई तो उन्होने संगीत की परीक्षा देने की सोची, लेकिन पारिवारिक कारणों से वह इस परीक्षा में शामिल न हो सकी, इससे वह हताश हुई और कुछ दिनों बाद अपने गाँव वापस आ गयी। जिस दौरान वह अपने गाँव लौटी तो उस समय सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में आंदोलनों का दौर चल रहा था। समय के साथ ही वह भी आंदोलनों में शामिल होने लगी और आंदोलनों से प्रभावित होकर उन्होने आंदोलनों पर गीत लिखने शुरू कर दिये। आंदोलन में शामिल लोगों को एकत्रित कर नुक्कड़, गीत व जागर करने लगे, जिससे लोग उनसे बहुत प्रभावित होने लगे और उनके गीतों की खूब प्रशंसा होने लगी। लोगों के निवेदन पर उन्होने आगे संगीत की शिक्षा लेने की सोची।
1996 में स्वर परीक्षा में शामिल होने के लिए गयी और सफलता भी मिली, जिसके बाद उनको आकाशवाणी पर गायन के लिए आमंत्रित किया गया। रेडियो के उस दौर में जब लोगों तक उनकी आवाज पहुंची तो पूरे उत्तराखण्ड में उनकी प्रशंसा होने लगी। उन दिनों लोग ज़्यादातर रेडियों पर निर्भर होते थे। हर रोज जब उनकी प्रस्तुति आकाशवाणी पर प्रसारित की जाती थी तो लोगों में भी उनके गीतों का बेसब्री से इंतजार रहता था।
1998 में पहली बार गढ़वाल महासभा ने उनको गायन के लिए आमंत्रित किया। यह बंसन्ती देवी का पहला लोकमंच कार्यक्रम था। यहाँ पर लोगों ने उनके गायन को सामने देखकर लोगों में काफी उत्साह था। यहाँ पर गायन के बाद लोगों ने उनकी प्रस्तुति की खूब सराहना की। आज भी उत्तराखण्ड में जागर प्रस्तुति के लिए उनको सबसे पहले स्थान दिया जाता है। जिसके कारण यह भी है कि वह उत्तराखण्ड की पहली ऐसी महिला है जिसने जागर में अपनी विख्याति बखूबी निभाई है।
बसन्ती देवी ने पूरे उत्तराखण्ड में अपनी गायन ख्याति से सबको मंत्रमुग्ध किया ही इसके साथ ही कारोबार क्षेत्र में भी उनको ब्रांड अम्बेस्ड़र बनाने की होड लगी। वर्तमान में वह उत्तरांचल ग्रामीण बैंक की ब्रांड अम्बेस्ड़र हैं। इसके साथ ही उनको अखिल गढ़वाल सभा देहरादून, रूपकुंड महोत्सव देवाल, पंडित विश्वंभर दत्त चंदोला शोध संस्थान देहरादून, उत्तराखण्ड शोध संस्थान देहरादून व उत्तरायणी जन कल्याण समिति बरेली द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।
पारम्परिक लोक संगीत व जगरों में उनकी संवेदना तो रही ही है, इसके साथ ही उनके पहनावे में भी उत्तराखण्ड की पारम्परिक संस्कृति व भेष-भूषा अपने जीवन के लोक पारम्परिक स्तर पर जीना ही पसंद कराते हैं।