औली


शीतकालीन शीतकालीन व हिमक्रीडा के लिए विश्व में प्रसिद्ध औली चमोली जिले के अंतर्गत जोशिमठ से 15 किमी0 व 2500 से 3250 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ हिमपात और हिमक्रीडा के लिए शीतकालीन में हजारों की संख्या में पर्यटक दूर-दूर से आते हैं। प्रकृति के सौन्दर्य से सुसज्जित औली में 5 किमी0 लंबे और 2 किमी0 चौड़े इस क्रीडा केंद्र में विश्व की आधुनिकतम क्रीडा उपकरणों की उचित व्यवस्था की गयी है। देश-विदेश से यहाँ पर्यटक आते रहते हैं व अपने साहसिक करतबों का प्रदर्शन करते हैं। इस पर्वत पर मखमली घास व पुष्प पाये जाते हैं साथ ही बुग्याल के लिए भी औली जाना जाता है।

माह जनवरी से मार्च तक यहाँ विविध साहसिक खेल आयोजित होते हैं। गढ़वाल मण्डल विकास निगम द्वारा यहाँ पर रज्जु मार्ग का भी निर्माण किया गया है, जिसकी लंबाई लगभग 4200 मीटर है। औली से प्रकृति के नजारे को देखकर मन को जो शांति और हर्षौल्लास की अनुभूति प्राप्त होती है। यहाँ से नन्दा देवी पर्वत, कामत पर्वत, त्रिशूल पर्वत व अन्य बर्फीली चोटियों के सौन्दर्य से नजरें आसानी से नहीं हटती।

औली से 41 किमी0 दूर नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान है। यहाँ से जोशिमठ मार्ग से बद्रीनाथ, तपोवन व गोपेश्वर के लिए भी मोटर मार्ग हैं। यहाँ पर चोटियों की ऊपरी-निचली ढलानों के मार्गों से यहाँ की यात्रा की जा सकती है। यहाँ पर गहरी ढलान लगभग 1,642 फुट व ऊँची चढ़ाई 2625 फुट पर है। यहाँ पर रुकने की उचित व्यवस्था है, इसमें गढ़वाल मण्डल विकास निगम का अतिथि गृह है।

औली बहुत ही अठिनाइयों भरा पर्यटन स्थल है। जो भी पर्यटक यहाँ घूमने आते हैं उनको मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ होने अति आवश्यक है। औली जो कि अत्यधिक ऊँचाई पर स्थित है, तो ठंड भी यहाँ बहुत होती है, जो भी पर्यटक यहाँ पहुँचते हैं वे अत्यधिक गर्म कपड़े, जैकेट, दस्ताने, गर्म पैंट, व गर्म जुराबें होनी बहुत आवश्यक है। इसके साथ ही घूमने के लिए सिर और कान को भी पूर्ण रूप से ढक लें, ताकि ठंडी व बर्फीली हवाओं का असर कम पड़े। बर्फ कि सफ़ेद चादर से ढके पर्वतों को नग्न आँखों से निहारने पर कुछ कठिनाई और मुश्किलों का सामना जरूर करना पड़ सकता है, जिसके लिए काले चश्मों का प्रयोग उचित रहेगा।

यहाँ पर घूमने आए पर्यटकों को अपने शारीरिक संतुलन का भी विशेष ध्यान रखना होता है। ठंड में शरीर की नमी कम होने के कारण शरीर में समस्या उत्पन्न होने लगती है, जिससे बचाने के लिए निरंतर पानी का सेवन कर, अन्य लाभकारी तरल (जूस) का प्रयोग करें।