धार्मिक अस्था का पवित्र केंद्र है मानसरोवर

मानसरोवर उत्तर में कैलाश पर्वत, दक्षिण में गुलेला मांधाता पर्वत, पश्चिम में राक्षस ताल तथा पूर्व में सुंदर पहाड़ियों से घिरा हुआ है। विश्व की समस्त झीलों में पवित्र, मनमोहक व प्रेरणास्त्रोत मानव कल्याण को प्रेरित करने वाली न केवल प्राचीनतम झील के रूप में आवृत्त है बल्कि हिन्दू धर्म के आस्था का भी केंद्र है। कैलाश पर्वत का निर्माण 300 करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय के प्रारम्भिक चरण में हुआ, जो भौगौलीक दृष्टि से तिब्बत में स्थित है। स्थानीय भाषा में इसे 'काँग रंपूछ' अथार्त बहुमूल्य रत्न कहा जाता है।

मानसरोवर के बारे में कहा जाता है कि इस झील का निर्माण स्वयं ब्रह्मा जी ने किया था। आदिकाल से ही कैलाश मानसरोवर को पवित्र तीर्थ स्थल माना गया है। कहा जाता है कि इस झील में स्नान करने से सभी पाप मिट जाते हैं। पौराणिक गाथाओं के अनुसार शिव और ब्रह्मा, देवगण, सरिच आदि ऋषि व रावण आदि ने यहाँ तप किया था। युधिष्ठर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पुंछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इसके साथ ही यहाँ अनेक ऋषिमुनियों के तपस्या करने का उल्लेख प्राप्त होता है। कुछ धार्मिक विद्वानों के अनुसार शंकरचार्य ने अपने शरीर का त्याग यहीं किया था।

हिंदुओं के अनुसार कैलाश शिव का सिंहासन और बौद्धों के अनुसार एक विशाल प्राकृतिक मण्डल लेकिन फर्क इतना है कि दोनों ही धर्मों के लोग इसे तांत्रिक शक्तियों का भंडार मानते हैं। इस पर्वत का पिरामिड आकार पूरे वर्षभर बर्फ की सफेद चादर से ढका होता है। जैन धर्म में इस स्थान का विशेष महत्व है। वे कैलाश को अष्टापद कहते हैं। ग्यारहवीं सदी में सिद्ध मिलैरेपा इस प्रदेश में अनेक वर्ष तक रहे। विक्रम-शीला के प्रमुख आचार्य दीपशंकर श्रीज्ञान तिब्बत नरेश के आमंत्रण पर बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए यहाँ आए थे।

कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए वैसे तो अनेक मार्ग हैं। मानसखंड पुराण में काली नदी के तट से होकर कैलाश मानसरोवर यात्रा तीर्थ को जाने का मार्ग बताया गया है। इस यात्रा मार्ग के कारण ही कुमाऊँ मानसखंड भी कहलाता है। अल्मोड़ा से पिथौरागढ़ जिले के असकोट, धारचूला, गूंजी लिपुलेख से तकलाकोट होकर जाने वाला मार्ग पहले सुगम व 1170 किमी0 है। कैलाश पर्वत का उच्चतम शिखर बिन्दु 5810 मीटर ऊंचा व मानसरोवर 4530 मीटर ऊंचा है जो की विश्व की सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित झील है। इस झील की परिधि 90 किमी0, गहराई 90 मीटर तथा क्षेत्रफल 320 वर्ग किलोमीटर है। यह झील एक लगभग 4515 मीटर लंबे प्राकृतिक जल-संयोजक द्वारा राक्षसताल से जुड़ी है। सतलुज नदी राक्षसताल से ही निकलती है।

इस यात्रा के लिए हल्द्वानी, काठगोदाम, भुवाली तथा अल्मोड़ा होते हुए रेलगाड़ी तथा सड़क मार्ग से वागेश्वर पहुंचा जाता है। आगे वागेश्वर से काँड़ा, विजयपुर, कोट्मन्या से चाय बागानों (पूर्वी) तथा गौरी नदियों को पार करते हुए डीडीहाट, ओगला तथा जौलजीवी होकर धरचूला पहुँचते हैं। यही रात्री विश्राम व चिकित्सा परीक्षण करके अगले दिन धरचूला से 19 किमी0 आगे तवाघाट (914 मी0) है, जहाँ पर तीव्रवेग से गर्जन करती हुई पूर्वी धौली तथा काली नदी का संगम होता है।

तवाघाट से 17 किमी0 आगे माँग्टी तथा चार किमी0 की दूरी पर गाला (2440 मी0) है। यहाँ कुमाऊँ मण्डल विकास निगम द्वारा निर्मित विश्राम-कुटियों के शिविर सुविधाएं उपलब्ध है। गाला से 16 किमी0 चलकर बूंदी पहुँचते हैं जहाँ यात्री विश्राम करते हैं। बूंदी से 17 किमी0 आगे 3500 मीटर की ऊंचाई पर गूंजी है। बूंदी से 3 किमी0 आगे चलकर छियालेख (3350 मी0) पहुँचते हैं। यहाँ से दक्षिण की ओर काली गंगा नदी और पूर्व में अपि नाम्भा की चोटियाँ तथा गरब्यांग और छांगरु गाँव दिखाई देते हैं। उत्तर में नेपाल से आने वाली थेकर नदी का कालीनदी से संगम होता है। छियालेख से 14 किमी0 आगे गूंजी पहुँचकर छोटा कैलाश यात्रा मार्ग आरंभ हो जाता है।

गूंजी से काली नदी के तट के साथ 10 किमी0 चलकर कालापानी पहुंचा जाता है। कालापानी से नवींढाँग मात्र 9 किमी0 है। नवीढ़ांग से 8 किमी0 चलकर लिपुलेख दर्रा (5334 मी0) है। यहाँ से यात्री तिब्बत में प्रवेश करते हैं।  करनाली नदी के किनारे तकलाकोट या पुरांग व्यापारिक केंद्र है। आगे 3-4 किमी0 की दूरी पर डोगरा जनरल जोरावर सिंह के स्मारक के भग्नावेष है यही कुछ औपचारिकता पूरी कर मुद्राओं को बदला जाता है। यहाँ से यात्री दल दो समूहों में विभक्त होकर एक कैलाश परिक्रमा व दूसरा दल मानस परिक्रमा के लिए प्रस्थान करता है। यात्री बस पुरांग से बायीं ओर गुलैला दर्रा, राक्षसताल तथा दायीं ओर गुलैला पर्वत होती हुई तारचैन पहुँचती है। यहीं से मानसरोवर झील दिखाई देती है। तारचैन से कैलाश परिक्रमा करने वाला दल पदल ही जाता है जबकि मानस दल बस द्वारा होकर पहुंचा जाता है।

कैलाश पर्वत की ओर 20 किमी0 लाहाचू नदी के साथ-साथ चलते हुए सूर्यास्त से पूर्व दिरापुक  गोम्पा (4909 मी0) पहुँचकर कैलाश के उतरी भाग के सूर्यास्त का मनमोहक दृश्य दिखाई देता है। मानस दल परिक्रमा की ओर झील के दक्षिण-पश्चिमी भाग के साथ-साथ जैदी पर परिक्रमा पूर्णा करने से पहले गोसुअल का भी दर्शन करता है।