मैती आंदोलन के जननायक श्री कल्याण सिंह रावत |
उत्तराखंड में पर्यावरण के प्रति अपनी संवेदना और भावनाओं से परिपूर्ण चिपको आन्दोलन के बाद दूसरा आन्दोलन "मैती आंदोलन" के नाम से जाना गया, मैती अथार्त लड़की का मायका। मैती आंदोलन चिपको आन्दोलन से प्रेरित होकर बेटी की शादी के समय उसके यादगार पलों को सँजोये रखने की रीत आज ज़ोरों पर शुरू हो चुकी है।
इस आंदोलन की शुरुआत 1995 में चमोली जिले के अंतर्गत ग्वाल्दम के इंटर कॉलेज में जीव विज्ञान के प्रवक्ता रहे श्री कल्याण सिंह रावत द्वारा की गई। श्री रावत जी का जन्म चमोली जिले के बैनोली गाँव में हुआ। बैनोली गाँव कर्णप्रयाग से लगभग 26 किमी0 की दूरी पर स्थित है। श्री कल्याण सिंह रावत ने स्थानीय स्थलों का भ्रमण कर उन्होने गाँव की महिलाओं व कन्याओं की एक ऐसी टोली तैयार की।
पर्यावरण संरक्षण के प्रति स्थानीय युवतियाँ इस अभियान से काफी संख्या में जुडने लगी। पर्यावरण संरक्षण के प्रति महिलाओं का दल अधिक सक्रिय होने लगा, जिसके बाद उन्होने निर्णय लिया कि गाँव में दुर्बल आर्थिक परिवार की लड़कियों कि शिक्षा एवं विवाह में सहयोगी बनकर जन जागृति का कार्य भी निरंतर करते रहे। उनका यह विचार मैती आंदोलन के रूप में साकार हुआ। इस आन्दोलन की बयार दूर-दूर के गाँवों तक फैलाने लगी और धीरे-धीरे इस आन्दोलन से कई गाँवों से महिलाओं का संगठन भी जुडने लगा।
इस आन्दोलन से जुड़ी सदस्य अविवाहित लड़कियां होती है। गाँव की लड़कियां जलवायु के अनुसार किसी भी प्रजाति का पौधे का रोपण करती है, जो की उसकी शादी के समय एक अहम रस्म के तौर पर उसके जीवन साथी को उपहार स्वरूप उसके संरक्षण को भावनात्मक बनाती है। शादी में होने वाली सारी रस्मों के साथ ही वृक्षा रोपण के रस्म को भी भली-भाँति एक सूत्रधार में अंकित किया जाता है। 6 हजार से अधिक गाँवों में यह आन्दोलन संस्कार का स्वरूप बन चुका है।
शादी की रस्म के साथ रोपण किया जाने वाला पौधा घर के निकट उपयुक्त स्थान पर उसका रोपण पूरे मंत्रोच्चार के स्मृति के रूप में विस्थापित किया जाता है। यह आन्दोलन आज भावनात्मक होने के साथ ही संस्कृति व पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक बन चुका है। शुरुआती दौर में यह आन्दोलन राज्य के अधिकत्तर भागों में फैल चुका है। इसके साथ ही अब यह आन्दोलन अमेरिका, कनाडा, थाइलैंड, नेपाल व इंग्लैण्ड में भी यह आन्दोलन लोकप्रिय हो चुका है।
2000 के समय नन्दा देवी राजजात के दौरान नौटी के निकट रामधार वन क्षेत्र में 13 जनपदों की जागरूक महिलाओं को बुलाया गया जहां पर "नन्दा देवी स्मृति वन" की स्थापना की गयी। मैती आंदोलन के तहत अब तक लाखों की संख्या में पेड़ लग चुके हैं।