हिन्दू धार्मिक स्थलों में पाँच बदरी स्थलों का महत्व

"उत्तराखंड के गढ़वाल मण्डल के तहत शिव और विष्णु पूजा समान रूप से होती है। बद्रिकाश्रम में पंचबदरी के अंतर्गत बद्रीनाथ, आदिबद्री, योगध्यानबदरी तथा भविष्य बदरी है। कहा जाता है की इन पाँच तीर्थ स्थलों की यात्रा के बाद ही बदरी दर्शन पूर्ण माना जाता है।"





बदरीनाथ:
हिमालय की गोद में व नर-नारानयण पर्वतों के मध्य भू-बैकुंड बद्रीनाथपुरी में भगवान बद्रीविशाल का भव्य मंदिर है। बद्रीनाथ मंदिर देश की प्राचीन संस्कृति एवं धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है। ऋषिकेश से 300 किमी0 की दूरी पर स्थित है। मंदिर कुछ दूरी पर अलकनन्दा के पार्श्व में गर्म जलधारा तप्तकुंड है। मंदिर प्रक्रिमा में शंकराचार्य जी, लक्ष्मी व अन्य देवी-देवताओं के मंदिर है।

आदिबद्री:
चमोली जिले के अंतर्गत कर्णप्रयाग से 21 किमी0 की दूरी पर रानीखेत-चौखुटिया राष्ट्रिय राजमार्ग पर स्थित है। आदिबद्री का मुख्य स्थान नौठा है। छठी व बरहवीं शताब्दी के दौरान यहाँ 14 छोटे-छोटे मंदिरों के समूह है। मंदिरों की दीवारों पर गंगा यमुना, नृत्य करते गंधर्व, कीर्तिमुखा व्यास, हाथ जोड़े गरुड, गौरी-शंकर, लक्ष्मी नारायण, गणेश आदि देवी देवताओं के चित्र देखने को मिलेंगे।

वृद्धबदरी:
बदरीनाथ मार्ग पर हेलंग से लगभग तीन किमी0 की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि यहाँ भगवान विष्णु ने मार्ग अवरुद्ध होने पर वृद्ध सन्यासियों को दर्शन दिये, इसलिए इस स्थान का काम वृद्धबदरी के नाम से जाना जाता है।

योगध्यानबदरी:
जोशीमठ से 20 किमी0 कि दूरी पर पांडुकेश्वर की पुरानी बस्ती में योगध्यान बद्री का मंदिर है। यहाँ पर राजा पांडु अपनी दोनों पत्नियाँ कुंती व माद्री के साथ निवास करते थे। यहीं पर पांडवों का जन्म हुआ। राजा पांडु ने अपने को शाप मुक्त करने के लिए यहीं तपस्या की थी, इसलिए इस स्थान का नाम योगध्यानबदरी पड़ा।

भविष्य बदरी:
जोशीमठ से 18 किमी0 नीति घाटी मोटर मार्ग पर भविष्य बदरी स्थान है। भगवान विष्णु के मंदिर में यहाँ भविष्य बदरी की आधी आकृति युक्त मूर्ति पूजा होती है। कहा जाता है कि घोर कलयुग आने पर बद्रीनाथ के मार्ग पर नर-नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे। तब बद्रीनाथ यात्रा बंद हो जाएगी और भविष्य बद्री में बद्रीनाथ जी की आकृति की यह मूर्ति पूर्ण होकर भगवान भविष्य-बदरी में प्रकट हो जाएगी, जिसके बाद यहाँ बद्रीनाथ जी की पूजा हो सकेगी।