"देवभूमि के नाम से जाना जाने वाला उत्तराखंड के अस्तित्व में हिन्दू धर्मों के विशेष तीर्थ स्थल विस्थापित हैं, इन तीर्थ स्थलों के अतिरिक्त पंचबदरी व पंचकेदार के अलावा पाँच प्रयागों का संगम भी है।"
विष्णुप्रयाग:
बद्रीनाथ मार्ग पर जोशिमठ से लगभग 10 किमी0 आगे अलकनंदा व विष्णुगंगा के संगम पर स्थित विष्णुप्रयाग स्थित है। संगम के दोनों ओर जय-विजय पर्वत इस भांति प्रतीत होते हैं जैसे भगवान विष्णु के द्वार पाल हो। सूक्ष्म-बद्रीनाथ क्षेत्र प्रारम्भ होता है। यहाँ मुख्य मार्ग पर विष्णु भगवान का मंदिर है। मान्यता है कि यहाँ देवऋषि नारद ने अष्टाक्षरी मंत्रों का जाप कर विष्णु आराधना करने के पश्चात उनके साक्षात दर्शन प्राप्त किए थे। धौली गंगा की तीव्र गति के कारण अलकनंदा में मिलने के बाद भी कहीं दूर तक अलग प्रतीत होती दिखाई देती है।
नन्द्प्रयाग:
ऋषिकेश बद्रीनाथ मार्ग पर अलकनंदा व नंदकिनी के संगम पर नन्द्प्रयाग स्थित है। पौराणिक गाथाओं के अनुसार सत्यवादी महाराज नन्द ने यहाँ पर तपस्या थी।
कर्णप्रयाग:
अलकनंदा व पिंडार के संगम पर स्थित कर्णप्रयाग स्थित है। गाथाओं के अनुसार यहाँ महादानी कर्ण ने सूर्य देवता की उपासना कर अभेद कवच प्राप्त किया था। यहाँ प्राचीन मंदिर कर्ण मंदिर, उमादेवी व श्री नन्दा देवी यात्रा के लिए मार्ग व चमोली जिले का मुख्य केंद्र भी है।
रुद्रप्रयाग:
अलकनंदा व मन्दाकिनी के संगम पर स्थित रुद्रप्रयाग ऋषिकेश से 139 किमी0 की दूरी पर स्थित है। संगम के समीप रुदरेश्वर, हनुमान के अतिरिक्त अन्य देवी- देवताओं के मंदिर स्थित है। पौराणिक गाथाओं के अनुसार यहाँ पर ॐ नामों: शिवाय: मंत्र से शिवाजी की आराधना करते हुए संगीत शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया था, इसलिए भगवान रुद्रप्रयाग को पहले रुद्रावत कहते थे। रुद्रप्रयाग से केदारधाम का मुख्य मार्ग प्रारम्भ होता है।
देवप्रयाग:
भागीरथ के संगम पर देवप्रयाग हरिद्वार 94 किमी0 की दूरी पर स्थित है। नौवीं शताब्दी का रघुनाथ मंदिर के अलावा अन्य भव्य मंदिर भी है। पौराणिक गाथाओं के अनुसार भगवान राम ने रावण दोष के निवारण हेतु यहाँ तपस्या की थी। यहाँ स्थित संकराचार्य गुफा भी है। गोमुख ग्लेशियर से प्रवाहित होकर भागीरथी नदी अलकनंदा से मिलने के बाद पतित पावन गंगा कहलाने लगती है। कटाव के कारण यहाँ दो कुंड बन गए हैं। अलकनंदा की ओर वशिष्ठ कुंड तथा भागीरथी की ओर ब्रह्मा कुंड है। देवप्रयाग के चारों ओर चार शिवजी विराजमान है, जो क्षेत्रपाल माने जाते हैं। यह पावननगरी, दशरथांचल, गृध्र तथा नृसिंघ तीन पर्वतों से घिरी हुई है।