रुद्रप्रयाग स्थित जसोली में माँ हरियाली देवी का मंदिर स्थित है। यह मंदिर जसोली से 08 किमी0 की दूर पर स्थित है। स्थानीय तौर पर माँ हरियाली का मंदिर बहुत ही लोकप्रिय व कल्याणकारी है। मंदिर समुद्रतल से लगभग 800 फीट की ऊँचाई पर स्थित इस मंदिर में क्षेत्रपाल और हीट देव की प्रतिमां विराजमान है।
58 सिद्धपीठ मंदिर में से एक माँ हरियाली का मंदिर भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि महामाया देवकी कि सातवीं संतान के रूप में पैदा हुई थी। मथुरा नरेश कंश ने महामाया को पटक कर मारना चाहा, जिसके फस्वरूप उनके शरीर के अंश पूरी पृथ्वी में जहां भी गिरे उन स्थलों को सिद्धपीठ के नाम से जाना गया। इसी तरह इस स्थान पर माँ हरियाली का हाथ गिरा, जिसके बाद यह स्थान हरियाली देवी के नाम से जाना गया।
माँ हरियाली मंदिर में जन्माष्टमी और दिवाली के पवित्र अवसर पर यहाँ बहुत बड़ा मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से लोग शामिल होने आते हैं। उस दिन हरियाली देवी की प्रतिमां को यहाँ से 07 किमी0 दूर हरियाली काँटा ले जाया जाता है, जहाँ डोली के साथ-साथ भक्तों की टोली भी उनके साथ भ्रमण के लिए निकलती है।
माँ हरियाली की डोली जब परिक्रमा के लिए भ्रमण पर निकलती है, तो यात्रा में शामिल भक्तों को कड़े नियमों का पालन करना अतिआवश्यक होता है। इस यात्रा में महिलाओं का शामिल होना वर्जित माना जाता है, तो वहीं अन्य यात्री यात्रा से पूर्व माँस, लहसुन और प्याज का पूर्णरूप से त्याग करते हैं। सालभर मंदिर में भक्तों का जमावड़ा रहता है। कहा जाता है कि जसोली क्षेत्र में स्थित मंदिर शंकराचार्य के समय से निर्मित है। यात्रा शंकराचार्य के समय से ही आयोजित होती आ रही है। यात्रा में शामिल भक्त नंगे पाँव माँ की डोली के साथ भ्रमण हेतु निकलते हैं।
यात्रा के दौरान देवी का दर्शन कर उसी दिन भक्तों को वापस आना होता है। पौराणिक गाथाओं के अनुसार जसोली में देवी का ससुराल जहाँ माँ का मंदिर स्थित है, जबकि हरियाली देवी काँठा में मायका है। पूरे वर्षभर में देवी अपने मायका धनतेरस के अवसर पर एक ही बार जाती है। यात्रा का पहला पड़ाव कोदिमा गाँव व दूसरा बाँसों गाँव है।